लकड़बग्घा - 1 सिद्धार्थ शुक्ला द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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लकड़बग्घा - 1



एक जंगल था उसमे था एक लकड़बग्घा!

हुआ यूं कि शातिर कोबरा 🐍 ने उसे एक दिन धर लिया और उसका एक वीडियो बना डाला। कुछ दलाली टाइप की डील थी उस वीडियो में जिसके अंतर्गत लकड़बग्घे को एक भेड़िये का झूठा प्रचार करना था.. जिसके एवज में उसे करोड़ो जरिप्टो मिलने थे (जरिप्टो जंगल मे चलने वाली एक करेंसी) । अब हुआ क्या कोबरा था जंगल की भोली भाली जनता की तरफ। जी हाँ, उस समय मे जब शेरो को दरकिनार करके दो भेड़िये राजा बन बैठे थे (शेर नदारद हो चुके थे) तब कोबरे का भी जमीर जागा और उसने लकड़बग्घे की इमेज को एक्सपोज़ करने की ठानी। गौरतलब है कि लकड़बग्घा जंगल में मशहूर था और अधिकतर मशहूर व्यक्ति का इस्तेमाल धूर्त नेता जनता में भ्रामक जानकारी डालने हेतु करते हैं। होना क्या था कोबरा के कोबरा कांड के चलते लकड़बग्घे की पोल खुल गयी कि वो कुछ पैसों के लिए अपना ज़मीर बेच देता है।

एक बार जंगल मे एक महामारी फैली, अफरा तफरी मच गई। जानवर भूखे मरने लगे , उन्हें जबरन उनकी गुफ़ाओं में , घोसलों में बंद कर दिया गया। मरता क्या न करता, भेड़ियों को अपना राजा बना तो दिया पर हालात पहले से बदतर होते जा रहे थे। इन सब मे उन जानवरो की स्थिति सबसे ज्यादा खराब थी जो दूसरे जंगलों से यहाँ जीवनयापन करने आये थे। जिन्हें "माइग्रैंट" कहा जाता था। हालत खराब थी और वापिस अपने घर जाने का कोई रास्ता नही दिख रहा था। एक ही समस्या "घर कैसे जाएं?" क्योंकि अंतरराष्ट्रीय भेड़ियों के संरक्षण में इस जंगल के भेड़ियों ने भी जंगल को एक जेल बना दिया था.. बस ट्रेन सब बंद !!

इस त्राहिमाम के चलते लकड़बग्घे को एक आइडिया आया उसने सोचा कि पुरानी खराब इमेज को सुधारने के लिए क्यों ना कुछ किया जाए उसने एक अभियान चलाया - मजबूर प्रवासी जानवरो को उनके घर पहुंचाने की व्यवस्था के रूप में । भेड़ियों को भी उसका ये आइडिया पसंद आया क्योंकि इससे दो चीज़ें सध जाएंगी - नम्बर एक लकड़बग्गा महात्मा बन जायेगा और दूसरा भोली प्रजा (मूढ़ को सभ्य भाषा मे भोला कहा जाता है) का ध्यान भेड़ियों से हट कर लकड़बग्घे पर लग जायेगा और भेड़िये इस महामारी में भी मलाई छानते रहेंगे।

अब समय था योजना को क्रमबद्ध तरीके से क्रियान्वित करने का , तो उसी योजना के अनुसार पहले कुछ बैल गाड़ियों का इंतजाम कराया गया फिर कुछ तथाकथित बेसहारा जानवरो को उस में भरा गया (तथाकथित इसलिए कि वह लोग वही बेसहारा जानवर थे या नहीं यह तो पता नहीं पर हां यह बात पक्की थी कि हर बैलगाड़ी के सामने एक कैमरा जरूर होता जिसमे लकड़बग्घा अपना हाथ हिलाते हुए किसी संत सा प्रतीत हो) इस योजना का असली क्रियान्वयन "ज्वीटर" के माध्यम से होना था और इसके तहत ज्वीटर पर एक अभियान चलाया गया (ज्वीटर जंगल का सोशल मीडिया प्लेटफार्म था जिसका अधिकतम नियंत्रण भेड़ियों के सेवक की करते थे)

खैर, लकड़बग्घे को अचानक ज्वीटर पर ढेर सारे घर पहुँचाने के अनुरोध आने लगे और वो भी ऐसे मजदूर जानवरो से जो ज्वीटर तो छोड़ो , खाने के भी लाले पड़े हुए थे। सोचिए एक ईंट की भट्टी पर काम करने वाला, चप्पल सीने वाला , चद्दर बुनने वाला "ज्वीट" कर रहा है मजे की बात ये थी कि लकड़बग्घा या उसके सेवक बड़े ही बाहुबली टाइप के जवाब उनको दे रहे थे जैसे साक्षात कल्कि अवतार ही जमीन पर उतर आया हो। अचानक सब गरीब मजबूर कमजोर जानवर इतने बुद्धिमान हो गए की सब एक हफ्ता या एक महीने पहले एकाउंट बना कर ज्वीटर पर ज्वीट करने लगे और मदद तुरंत हाज़िर। मानो ये हो नही रहा हो दिखाया जा रहा हो।

हद तो तब हो गयी जब कुछ ज्वीटर खाते घर पहुंच कर लकड़बग्घे को ये ज्वीट करने लगे कि हमने अपने बच्चे को आपका नाम दिया है, आप राजा हो, देशभक्त हो वगैरह वगैरह। बैलगाड़ी दूसरे गांव पहुंची की नही पता नही पर लकड़बग्घा रातों रात मसीहा बन गया क्या पता भविष्य में भेड़ियों की जमात में शामिल हो जाये क्योंकि मूढ़ता की एक खासियत होती है वो ये की वो शब्दो और तस्वीरों पर भरोसा करती है उसके पीछे के दिमाग को नही पढ़ पाती।

शायद ज्वीटर इसलिए भी इस्तेमाल किया गया हो कि असली मजबूरों को पता ही न चले कि उनके पीछे क्या गेम सेट हो गया हो। क्योंकि स्मार्ट फोन तो पेट भरे तो उपलब्ध हो और हो भी जाये तो फेकबुक टिकटोक तक ही सीमित रह जाता है । ज्वीटर अमीरों का शौक है।

इसी बीच जंगल की चौपाल पे एक बूढ़ा खरगोश 🐰कछुए 🐢से कह रहा था कि तुम्हें क्या लगता है महामारी कहाँ से आई? कछुए ने एक छिपकली🦎 की तरफ देखते हुए कुछ कहने की मंशा से खरगोश की तरफ सर उठाया और कहा ......

क्रमश:

नोट : कहानी काल्पनिक है। किसी जीवित या मृत व्यक्ति का इससे सम्बंध मात्र संयोग हो सकता है।

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